क्यों मृत्युदंड देने के बाद जज पेन की निब तोड़ देता है?!
मृत्युदंड की सजा सुनाने के बाद Judge अपनी Pen की Nib क्यों तोड़ देते है।
दुनिया में बहुत सारे ऐसे सवाल है जो की आम आदमी को भी कुछ न कुछ वजह से हररोज सताते है। जिसका जवाब पूरी तरह से देना गूगल के बस की भी बात नहीं। जैसे की क्रिकेट के मैच में सिर्फ तीन Stumps ही क्यों होती है?, Motor Bike का और Car का Accelerator दायी ओर ही क्यों होता है?, तिरंगे के अशोक चक्र में 24 Lines ही क्यों होती है?, Patrol Pump की Pipe का कलर Black क्यों होता है? ऐसे कई सवाल रोजमारा की ज़िंदगी मे आप को होते होंगे। यह सवाल भी ऐसा एक विश्मय जनक सवाल है की जज किसी मुजरिम को मृत्युदंड की सजा सुनाने पर अपनी पेन की निब क्यों तोड़ देते है?
आम तौर पे कई लोगो में यह भ्रामक मान्यता प्रवर्तमान है की जज ऐसा इसलिए करते है क्यूंकि यह भारत के संविधान का प्रवधान है, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है। फांसी की सजा ज्यादातर सुप्रीम कोर्ट में सुनाई जाती है। फांसी की सजा सुनाने के बाद पेन की निब तोड़ देने वाला काम एक प्रतीकात्मक हरकत है। जिस कलम से जज ने किसी की जीवन डोर तोड़ दी हो वह कलम को जज वापिस इस्तेमाल नहीं करना चाहते। फांसी सुनाने के बाद पेन की निब को तोड़ ना जज की भावनाओ से जुड़ा है। जब श्याही वाली Pens Use होती थी तब उस वक्त पेन की निब तोड़ने पर निब को Replace किया जा सकता था, लेकिन आज की स्थिति अलग है। आज कल जेल पेन या दूसरी Pens के Use की वजह से पेन की निब तोड़ने के बाद पूरी पेन को ही बदल दिया जाता है। जज द्वारा पेन की निब तोड़ने की दफा 302(Hang Till Death) के लिए ही है।
कैसे शुरू हुई यह परंपरा
यह परंपरा भारत में British राज से चली आ रही है। England के जज भी मुजरिम को फांसी की सजा सुनाने के तुतंत बाद पेन की निब को तोड़ देते थे। सबसे पहले यह परंपरा की शुरुआत किस जज ने की वह अभी तक जानने में नहीं आया है।
जज के द्वारा पेन की निब तोड़ देने के बारे में कई सारी Theories है। जिसमे से एक यह कहती है की पेन की निब तोड़ देना ग्लानि भाव को दर्शाता है। किसी की मौत का परोक्ष कारन बनना एक जज के मन में बहुत ग्लानि पैदा करता होगा इसी लिए उसके हाथ हस्ताक्सर के वक्त कम्पे होंगे तभी से यह शुरुआत हुई।
एक बार जब हस्ताक्सर हो गया तो फिर वह जज भी Functus Officio हो जाता है। यानि की अब वहा से उस जज के लिए भी अपने फैसले के लिए No return No change का लेबल लग जाता है। उसके बाद अगर जज भी चाहे तो अपना फैसला बदल नहीं सकता। शायद इसी लिए वह पेन की निब को भी तोड़ देते है क्यों की वह पेन भी प्रतिकारात्मक रूप से Functus Officio का निर्देशन है।
दुनिया में बहुत सारे ऐसे सवाल है जो की आम आदमी को भी कुछ न कुछ वजह से हररोज सताते है। जिसका जवाब पूरी तरह से देना गूगल के बस की भी बात नहीं। जैसे की क्रिकेट के मैच में सिर्फ तीन Stumps ही क्यों होती है?, Motor Bike का और Car का Accelerator दायी ओर ही क्यों होता है?, तिरंगे के अशोक चक्र में 24 Lines ही क्यों होती है?, Patrol Pump की Pipe का कलर Black क्यों होता है? ऐसे कई सवाल रोजमारा की ज़िंदगी मे आप को होते होंगे। यह सवाल भी ऐसा एक विश्मय जनक सवाल है की जज किसी मुजरिम को मृत्युदंड की सजा सुनाने पर अपनी पेन की निब क्यों तोड़ देते है?
आम तौर पे कई लोगो में यह भ्रामक मान्यता प्रवर्तमान है की जज ऐसा इसलिए करते है क्यूंकि यह भारत के संविधान का प्रवधान है, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है। फांसी की सजा ज्यादातर सुप्रीम कोर्ट में सुनाई जाती है। फांसी की सजा सुनाने के बाद पेन की निब तोड़ देने वाला काम एक प्रतीकात्मक हरकत है। जिस कलम से जज ने किसी की जीवन डोर तोड़ दी हो वह कलम को जज वापिस इस्तेमाल नहीं करना चाहते। फांसी सुनाने के बाद पेन की निब को तोड़ ना जज की भावनाओ से जुड़ा है। जब श्याही वाली Pens Use होती थी तब उस वक्त पेन की निब तोड़ने पर निब को Replace किया जा सकता था, लेकिन आज की स्थिति अलग है। आज कल जेल पेन या दूसरी Pens के Use की वजह से पेन की निब तोड़ने के बाद पूरी पेन को ही बदल दिया जाता है। जज द्वारा पेन की निब तोड़ने की दफा 302(Hang Till Death) के लिए ही है।
कैसे शुरू हुई यह परंपरा
यह परंपरा भारत में British राज से चली आ रही है। England के जज भी मुजरिम को फांसी की सजा सुनाने के तुतंत बाद पेन की निब को तोड़ देते थे। सबसे पहले यह परंपरा की शुरुआत किस जज ने की वह अभी तक जानने में नहीं आया है।
जज के द्वारा पेन की निब तोड़ देने के बारे में कई सारी Theories है। जिसमे से एक यह कहती है की पेन की निब तोड़ देना ग्लानि भाव को दर्शाता है। किसी की मौत का परोक्ष कारन बनना एक जज के मन में बहुत ग्लानि पैदा करता होगा इसी लिए उसके हाथ हस्ताक्सर के वक्त कम्पे होंगे तभी से यह शुरुआत हुई।
एक बार जब हस्ताक्सर हो गया तो फिर वह जज भी Functus Officio हो जाता है। यानि की अब वहा से उस जज के लिए भी अपने फैसले के लिए No return No change का लेबल लग जाता है। उसके बाद अगर जज भी चाहे तो अपना फैसला बदल नहीं सकता। शायद इसी लिए वह पेन की निब को भी तोड़ देते है क्यों की वह पेन भी प्रतिकारात्मक रूप से Functus Officio का निर्देशन है।
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