सात चक्रो का विज्ञान(The Science of Seven Chakras)
सात चक्रो का विज्ञान(The Science of Seven Chakras)
चलिए आज आप वाचक गण से एक सवाल पूछने का बहोत मन है, आम तौर पर देखा जाये तो भारत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य क्या है? क्या आप "राजनीती" जैसा कोई शब्द सोच रहे है? या फिर आप "Bollywood" जैसा कोई शब्द सोच रहे है?(हा हा हा...Just Kiding) नहीं | जो विषय मेरे मन को टटोल रहा है वह विषय इन सभी विषयो से ज़्यादा जटिल और आवश्यक है | पिछले कही सालो से कूड़ा करकट उठाना और मूल्यवान चीजों को कचरे में फेकना भारतीओ की पुरानी आदत रही है और यही उन का दुर्भाग्य भी बनी हुई है | वह पिछली कई सदियों से अपने महान विचारको द्वारा दिखाई गए इसारो को छोड़ कर उंगलिओ को ज़्यादा देख रहे है | इसी वजह से भारतीओ ने अपने कई ऐसे मूल्यवान विषयो को लगातार अन्याय किया है | ज्योतिष से लेकर वास्तुशास्त्र और ब्रम्हांड विज्ञान से लेकर ध्यान के विषयो तक सभी को भारतीयों ने और दुनिया ने किसी और ही दृस्टि से देखा है जैसे उन्हें इन सभी विषयोको देखने की जरूररत ही नहीं थी | ध्यान का विज्ञान और चक्रो का विज्ञान भी इन्ही अपमानित और अन्याइत विषयो में से एक है |
पतंजलि के योगसूत्र ग्रन्थ(2nd century BCE) के अनुसार अस्टांग योग सबसे करगत उपाय है खुद में मिलने का | पतंजलि ऋषिने इनमे समाधी में मिल ने के सात मुख्य योग अथवा सीढिया दर्शायी है जिनका पालन करने से साधक अपने में मिल सकता है | उनके दर्शाये सात अस्टांग योग के स्तम्भ कुछ इस तरह है 1) यम 2) नियम 3) आसन 4) प्राणायाम 5) प्रत्याहार 6) धारणा 7) ध्यान ( कैसे करे ? ). इनके आलावा एक आखरी स्तम्भ है जो की चक्रो के सम्बन्ध में सबसे महत्वपूर्ण है | और वह है समाधी इन सभी संभो को एक के बाद एक छूते हुए साधक आखरी स्तम्भ पर पहुँचता है. इन सभी स्तम्भों को भेद कर ही साधक को आखरी स्तम्भ को छूना है यही एक मात्रा नियम है योगसूत्र का. हमारी इस चर्चा में आखरी दो स्तम्भ काफी महत्व पूर्ण है परंतु पहले सभी स्तम्भों को भेदने क बाद दी ही साधक दूसरे स्तम्भों पर जाये वार्ना गंभीर परिणाम हो सकते है |
-------- मूलाधार चक्र :
विज्ञान के मुताबिक मानव शरीर सिर्फ एक ऊर्जा घर है उससे विषेश दूसरा कुछ भी नहीं | जब ऊर्जा खत्म हो जाती है तो शरीर भी हवा हो जाता है |.ऊर्जा के शंदर्भ में देखा जाये तो अभी आधुनिक रिसर्च भी यही बया कर रही है की इंसान के पास इतनी ऊर्जा है की वह अपने आस पास के ब्रम्हांड जगत को भी अपने हिसाब से चला सकता है(Quantum Physics ?) | मूलतः इंसान के पास जीवन ऊर्जा है जिसकी वजह से वह पुरा जीवन बिताता है | दूसरी सब उर्जाये इस मुख्या ऊर्जा के संदर्भ से काम करती है | वही से शुरू होता है चक्रो का अनोखा खेल वह जीवन ऊर्जा ही इंसान का "मूलाधार चक्र" जो की शरीर के बिलकुल मध्य में रीड की हड्डी के बिलकुल आखरी छोड़ पर होता है | इंसान के शरीर में लाखो ऊर्जा के छोटे-छोटे केंद्र है(114 गौण चक्र), यह सभी केंद्र एक और से चक्र ही है लेकिन शरीर का नियमन करने वाले मूल चक्र सिर्फ सात है | यह सभी सात चक्र दूसरे सभी चक्रो का नियमन करते है | इसे ऐसा समजिये की एक ही कतार में थोड़ी जुकी हुई सतह पर 7 गढ्ढे जो एक दूसरे के साथ छोटी एवं पतली नाले से जुड़े हुए है जिनमे से एक गढ्ढा जो की सबसे ज़्यादा पानी संगृहीत किये हुए है | अगर दूसरी सभी नालिया कचरे से जमी हुई है तो मूल नाली में से दूसरे में पानी जा ही नहीं पायेगा | इसी तरह सात चक्रो में से मूल आधार चक्र पूरी ऊर्जा संगृहीत किये हुए बैठा होता है | उस ऊर्जा के बहाव के लिए सिर्फ दो ही रास्ते है या तो नीचे की तरफ(सेक्स के रूप में विलीनीकरण) या तो ऊपर की तरफ(परम ज्ञान की और) | मुलाधार चक्र एक तरह से खाने और सोने का प्रेमी है | अगर आपका मूलाधार चक्र सक्रिय है तो आपका मन खाने या सोने में ही लगा रहेगा | एक तरह से मूलाधार की सक्रियता आपको पसु जैसा जीवन प्रदान करती है |
------- स्वाधिस्ठान चक्र
यह चक्र जनेन्द्रिय के ठीक ऊपर होता है | यह चक्र भोग विलास का चक्र है अगर आपका यह चक्र सक्रिय है तो आपका मन सभी तरह के भोगविलास को पाने में लगा रहेगा | और लुफ्त उठाने में आप माहिर होंगे | अगर साधक किसी तरह से मुलाधा चक्र को खोल के ऊर्जा को स्वाधिस्ठान तक लेन में कामियाब होता है तो उसे वही पर रुकजाना मुनासिब नहीं रहता उसे यह चक्र से जल्द से जल्द अपनी ऊर्जा को ऊपर उठाने के लिए प्रयास करने चाहिए |
------- मणिपूरक चक्र
यह चक्र नाभि के ठीक निचे होता है | इस चक्र को नाभि चक्र भी कहा जाता है | यह चक्र एक तरह से पालक चक्र है | बच्चा जब माँ के पेट में होता है तो वह मूलतः नाभि चक्र से ही सब पोसन ग्रहण करता है इसी वजह से इस चक्र को पालक चक्र कहा गया है | इस चक्र के चक्र के जागरूक होने पर साधक को अविरत( Continuously ) है और साधक पूरी तरह से अपने को खाली कर देता है | साधक का शरीर पुराने सभी भावनात्मक ग्रंधिया तोड़ देता है | और मन पूरी तरह से खाली हो जाता है |
------ अनहद चक्र
यह चक्र वहा होता है जहा दिल और पसलिया आपस में जुड़ती है | अगर आपका यह चक्र जागरूक है तो बेसक आप एक Creative इंसान हो सकते है | या फिर आप कोई वाम मार्गी हो सकते है | साधना के दौरान यह चक्र जागरूक होता है तो साधक अपने आप में पूरी तरह प्रेम से भर जाता है, उसे अपने दुश्मनो पर भी गहरे प्रेम की भावना आ सकती है | यह चक्र की जाग्रति साधक को पूरी तरह अस्तित्व के प्रति करुणा से भर देती है |
------ विशुद्धि चक्र
यह चक्र शरीर के गलेके भाग में स्थित है | अगर आप का यह चक्र जागरूक है यह तो आपकी समस्त जीवन ऊर्जा का ध्यान इस चक्र पर है तो आप एक अति शक्तिसाली इन्सान होंगे | यह चक्र में केंद्रित ऊर्जा आपको असीमित शक्ति प्रदान करती है जो की आपने कभी कल्पना भी नहीं की होती |
------ आज्ञा चक्र
आज्ञा चक्र जोकि दो भवो के ठीक बिच में होता है शरीर का दूसरा सबसे महत्व पूर्ण चक्र है | यह चक्र साधक का दूसरा सबसे बड़ा लकस्य होता है | अगर आपकी ऊर्जा सभी चक्रो से हो कर आज्ञा चक्र में केंद्रित होती है तो यह चक्र आपको असीमित ज्ञान की और ले जायेगा | मूलाधार चक्र व्यक्त करने वाला चक्र है तो आज्ञा चक्र ग्राहक चक्र है | आज्ञा चक्र ब्रम्हांड के सभी ज्ञान अपने में ग्रहण करने क्षमता रखता है |
------ सहस्त्रार्थ चक्र
कई साधक अपनी साधना आज्ञा चक्र पे आके छोड़ देते है और सोचते है की उन्हों ने बुद्धत्व पा लिया है | भूतकाल के विवेकानंद से लेके नागार्जुन तक के कई उदहारण हमारे सामने मौजूद है जिन्हो ने अपनी साधना आज्ञा चक्र पे छोड़ी थी और समाधी को या तो जिसे बुद्ध द्वारा निर्वाण( Nirvana ) वह परम सुख नहीं पा सके |यह चक्र सर के बिल कुल ऊपर के भाग में होता है जो की शरीर का सबसे कोमल भाग होता है | प्राचीन ब्राम्हण इसचक्र की रक्षा करने के लिए वहां के थोड़े हिस्से के बाल पूरा शरीर मुंडन करवा ने के बावजूद भी छोड़ देते थे जिसे "सीखा" कहा जाता था | यह चक्र अगर सक्रिय हो जाता है तो साधक उस परम चैतन्य से जुड़ जाता है जो की शुन्य स्वरूप परमात्मा है | यह चक्र की ऊर्जा साधक को भूत, वर्त्तमान और भविष्य तीनो से जोड़ देती है | यह चक्र एक मायने में आनंद का चक्र है, जो जागृत होजाने पे आनंद से साधक भर जाता है | इसके बाद जो बाबत दुसरो के लिए अति गंभीर है वह आप के लिए बाजीचा-ऐ- उत्तफाह(बच्चो का खेल) | यह चक्र सीधा द्वार हे उसका जिसे बुद्ध ने निर्वाण(Nirvana) और कृष्णा ने भगवद गीता में मोक्ष कहा था| यह चक्र का खुलना ही जीवन चक्र(The Way Life Recycle Itself ) से मुक्ति दिलाता है | और वह Patanjali Yoga सूत्र का आठवा सूत्र "समाधी" भी यह चक्र के खुल जाने पर सिद्ध होता है |
FYI :
ऊर्जा मूलाधार से आज्ञा चक्र तक पहुंचने के बाद वह मूल ऊर्जा जिसे कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है वह जगती है | जो एक असीमित ऊर्जा (Infinite Energy ) का स्त्रोत है या यु मान लीजिये की वह कुण्डलिनी ही पुरे ब्रम्हांड की ऊर्जा समेटे हुए है | वह ऊर्जा को सँभालने के लिए ही पहले साधक को पतंजलि के प्रथम पांच सूत्र का पालन करके ही छठ्ठे या सातवे सूत्र पर आना चाहिए तभी साधक कुण्डलिनी ऊर्जा को संभाल ने के काबिल बनता है | अगर अपनी पत्रता के बिना कोई सीधा ही कुण्डलिनी को छेड़े या फिर सीधा ही पतंजलि के सातवे सूत्र पर आ जाये तो ऐसा भी हो सकता है की साधक उस ऊर्जा को बर्दास्त न कर पाए और पागल हो जाये | स्वामीविवेकान्द का उदहारण इस बात को समजने के लिए श्रेष्ठ है | विवेकानंद हररोज अपने एक दोस्त की दुकान से गुज़रते थे जोकि बहोत आस्तिक आदमी था और मूर्ति पूजा का प्रसंसक था | उसकी दुकान में भी सेकड़ो मुर्तिया रहती थी | विवेकानद तो ठहरे नास्तिक इंसान तो एक दिन विवेकानद ने उस दोस्त से कहा की दुकान में इतनी सारी मूर्तिया जगह रोक रही है इन्हे फेक क्यों नहीं देते? उनके दोस्त ने मुर्तिया फेकने से साफ इंकार कर दिया | जब विवेकानद की ऊर्जा जगी तो उनको अपने उसी दोस्त के बारे में एक अनायास मुर्तिया फेकने वाला विचार आ गया | फिर विवेकानद ने बहार जाके देखा तो वह उनका दोस्त सच में अपनी सभी मुर्तिया बाहर फेकने लगा था | उस दोस्त को जब विवेकानद ने पूछा तो उसने जवाब दिया की यह तो मुझे खुद को भी नहीं मालूम की में यह क्या कर रहा हु!!!यह मुर्तिया फेकने से में खुद को रोक ही नहीं प् रहा हु!!!
चक्रो की ऊर्जा का बहाव जैसे आध्यात्मिक और आतंरिक मन पर असरकारी है वैसे ही चक्रो की ऊर्जा का बहाव भौतिक स्तर पर भी बोहोत महत्वपूर्ण है | जब चक्रो की ऊर्जा सही बहाव में बहती है तो इंसान एकदम स्वस्थ जीवन जीता है | अगर यह चक्र की ऊर्जा अस्त व्यस्त हो जाती है तो उसके परिणाम अति गंभीर होते है |
चलिए आज आप वाचक गण से एक सवाल पूछने का बहोत मन है, आम तौर पर देखा जाये तो भारत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य क्या है? क्या आप "राजनीती" जैसा कोई शब्द सोच रहे है? या फिर आप "Bollywood" जैसा कोई शब्द सोच रहे है?(हा हा हा...Just Kiding) नहीं | जो विषय मेरे मन को टटोल रहा है वह विषय इन सभी विषयो से ज़्यादा जटिल और आवश्यक है | पिछले कही सालो से कूड़ा करकट उठाना और मूल्यवान चीजों को कचरे में फेकना भारतीओ की पुरानी आदत रही है और यही उन का दुर्भाग्य भी बनी हुई है | वह पिछली कई सदियों से अपने महान विचारको द्वारा दिखाई गए इसारो को छोड़ कर उंगलिओ को ज़्यादा देख रहे है | इसी वजह से भारतीओ ने अपने कई ऐसे मूल्यवान विषयो को लगातार अन्याय किया है | ज्योतिष से लेकर वास्तुशास्त्र और ब्रम्हांड विज्ञान से लेकर ध्यान के विषयो तक सभी को भारतीयों ने और दुनिया ने किसी और ही दृस्टि से देखा है जैसे उन्हें इन सभी विषयोको देखने की जरूररत ही नहीं थी | ध्यान का विज्ञान और चक्रो का विज्ञान भी इन्ही अपमानित और अन्याइत विषयो में से एक है |
पतंजलि के योगसूत्र ग्रन्थ(2nd century BCE) के अनुसार अस्टांग योग सबसे करगत उपाय है खुद में मिलने का | पतंजलि ऋषिने इनमे समाधी में मिल ने के सात मुख्य योग अथवा सीढिया दर्शायी है जिनका पालन करने से साधक अपने में मिल सकता है | उनके दर्शाये सात अस्टांग योग के स्तम्भ कुछ इस तरह है 1) यम 2) नियम 3) आसन 4) प्राणायाम 5) प्रत्याहार 6) धारणा 7) ध्यान ( कैसे करे ? ). इनके आलावा एक आखरी स्तम्भ है जो की चक्रो के सम्बन्ध में सबसे महत्वपूर्ण है | और वह है समाधी इन सभी संभो को एक के बाद एक छूते हुए साधक आखरी स्तम्भ पर पहुँचता है. इन सभी स्तम्भों को भेद कर ही साधक को आखरी स्तम्भ को छूना है यही एक मात्रा नियम है योगसूत्र का. हमारी इस चर्चा में आखरी दो स्तम्भ काफी महत्व पूर्ण है परंतु पहले सभी स्तम्भों को भेदने क बाद दी ही साधक दूसरे स्तम्भों पर जाये वार्ना गंभीर परिणाम हो सकते है |
-------- मूलाधार चक्र :
विज्ञान के मुताबिक मानव शरीर सिर्फ एक ऊर्जा घर है उससे विषेश दूसरा कुछ भी नहीं | जब ऊर्जा खत्म हो जाती है तो शरीर भी हवा हो जाता है |.ऊर्जा के शंदर्भ में देखा जाये तो अभी आधुनिक रिसर्च भी यही बया कर रही है की इंसान के पास इतनी ऊर्जा है की वह अपने आस पास के ब्रम्हांड जगत को भी अपने हिसाब से चला सकता है(Quantum Physics ?) | मूलतः इंसान के पास जीवन ऊर्जा है जिसकी वजह से वह पुरा जीवन बिताता है | दूसरी सब उर्जाये इस मुख्या ऊर्जा के संदर्भ से काम करती है | वही से शुरू होता है चक्रो का अनोखा खेल वह जीवन ऊर्जा ही इंसान का "मूलाधार चक्र" जो की शरीर के बिलकुल मध्य में रीड की हड्डी के बिलकुल आखरी छोड़ पर होता है | इंसान के शरीर में लाखो ऊर्जा के छोटे-छोटे केंद्र है(114 गौण चक्र), यह सभी केंद्र एक और से चक्र ही है लेकिन शरीर का नियमन करने वाले मूल चक्र सिर्फ सात है | यह सभी सात चक्र दूसरे सभी चक्रो का नियमन करते है | इसे ऐसा समजिये की एक ही कतार में थोड़ी जुकी हुई सतह पर 7 गढ्ढे जो एक दूसरे के साथ छोटी एवं पतली नाले से जुड़े हुए है जिनमे से एक गढ्ढा जो की सबसे ज़्यादा पानी संगृहीत किये हुए है | अगर दूसरी सभी नालिया कचरे से जमी हुई है तो मूल नाली में से दूसरे में पानी जा ही नहीं पायेगा | इसी तरह सात चक्रो में से मूल आधार चक्र पूरी ऊर्जा संगृहीत किये हुए बैठा होता है | उस ऊर्जा के बहाव के लिए सिर्फ दो ही रास्ते है या तो नीचे की तरफ(सेक्स के रूप में विलीनीकरण) या तो ऊपर की तरफ(परम ज्ञान की और) | मुलाधार चक्र एक तरह से खाने और सोने का प्रेमी है | अगर आपका मूलाधार चक्र सक्रिय है तो आपका मन खाने या सोने में ही लगा रहेगा | एक तरह से मूलाधार की सक्रियता आपको पसु जैसा जीवन प्रदान करती है |
------- स्वाधिस्ठान चक्र
यह चक्र जनेन्द्रिय के ठीक ऊपर होता है | यह चक्र भोग विलास का चक्र है अगर आपका यह चक्र सक्रिय है तो आपका मन सभी तरह के भोगविलास को पाने में लगा रहेगा | और लुफ्त उठाने में आप माहिर होंगे | अगर साधक किसी तरह से मुलाधा चक्र को खोल के ऊर्जा को स्वाधिस्ठान तक लेन में कामियाब होता है तो उसे वही पर रुकजाना मुनासिब नहीं रहता उसे यह चक्र से जल्द से जल्द अपनी ऊर्जा को ऊपर उठाने के लिए प्रयास करने चाहिए |
------- मणिपूरक चक्र
यह चक्र नाभि के ठीक निचे होता है | इस चक्र को नाभि चक्र भी कहा जाता है | यह चक्र एक तरह से पालक चक्र है | बच्चा जब माँ के पेट में होता है तो वह मूलतः नाभि चक्र से ही सब पोसन ग्रहण करता है इसी वजह से इस चक्र को पालक चक्र कहा गया है | इस चक्र के चक्र के जागरूक होने पर साधक को अविरत( Continuously ) है और साधक पूरी तरह से अपने को खाली कर देता है | साधक का शरीर पुराने सभी भावनात्मक ग्रंधिया तोड़ देता है | और मन पूरी तरह से खाली हो जाता है |
------ अनहद चक्र
यह चक्र वहा होता है जहा दिल और पसलिया आपस में जुड़ती है | अगर आपका यह चक्र जागरूक है तो बेसक आप एक Creative इंसान हो सकते है | या फिर आप कोई वाम मार्गी हो सकते है | साधना के दौरान यह चक्र जागरूक होता है तो साधक अपने आप में पूरी तरह प्रेम से भर जाता है, उसे अपने दुश्मनो पर भी गहरे प्रेम की भावना आ सकती है | यह चक्र की जाग्रति साधक को पूरी तरह अस्तित्व के प्रति करुणा से भर देती है |
------ विशुद्धि चक्र
यह चक्र शरीर के गलेके भाग में स्थित है | अगर आप का यह चक्र जागरूक है यह तो आपकी समस्त जीवन ऊर्जा का ध्यान इस चक्र पर है तो आप एक अति शक्तिसाली इन्सान होंगे | यह चक्र में केंद्रित ऊर्जा आपको असीमित शक्ति प्रदान करती है जो की आपने कभी कल्पना भी नहीं की होती |
------ आज्ञा चक्र
आज्ञा चक्र जोकि दो भवो के ठीक बिच में होता है शरीर का दूसरा सबसे महत्व पूर्ण चक्र है | यह चक्र साधक का दूसरा सबसे बड़ा लकस्य होता है | अगर आपकी ऊर्जा सभी चक्रो से हो कर आज्ञा चक्र में केंद्रित होती है तो यह चक्र आपको असीमित ज्ञान की और ले जायेगा | मूलाधार चक्र व्यक्त करने वाला चक्र है तो आज्ञा चक्र ग्राहक चक्र है | आज्ञा चक्र ब्रम्हांड के सभी ज्ञान अपने में ग्रहण करने क्षमता रखता है |
------ सहस्त्रार्थ चक्र
कई साधक अपनी साधना आज्ञा चक्र पे आके छोड़ देते है और सोचते है की उन्हों ने बुद्धत्व पा लिया है | भूतकाल के विवेकानंद से लेके नागार्जुन तक के कई उदहारण हमारे सामने मौजूद है जिन्हो ने अपनी साधना आज्ञा चक्र पे छोड़ी थी और समाधी को या तो जिसे बुद्ध द्वारा निर्वाण( Nirvana ) वह परम सुख नहीं पा सके |यह चक्र सर के बिल कुल ऊपर के भाग में होता है जो की शरीर का सबसे कोमल भाग होता है | प्राचीन ब्राम्हण इसचक्र की रक्षा करने के लिए वहां के थोड़े हिस्से के बाल पूरा शरीर मुंडन करवा ने के बावजूद भी छोड़ देते थे जिसे "सीखा" कहा जाता था | यह चक्र अगर सक्रिय हो जाता है तो साधक उस परम चैतन्य से जुड़ जाता है जो की शुन्य स्वरूप परमात्मा है | यह चक्र की ऊर्जा साधक को भूत, वर्त्तमान और भविष्य तीनो से जोड़ देती है | यह चक्र एक मायने में आनंद का चक्र है, जो जागृत होजाने पे आनंद से साधक भर जाता है | इसके बाद जो बाबत दुसरो के लिए अति गंभीर है वह आप के लिए बाजीचा-ऐ- उत्तफाह(बच्चो का खेल) | यह चक्र सीधा द्वार हे उसका जिसे बुद्ध ने निर्वाण(Nirvana) और कृष्णा ने भगवद गीता में मोक्ष कहा था| यह चक्र का खुलना ही जीवन चक्र(The Way Life Recycle Itself ) से मुक्ति दिलाता है | और वह Patanjali Yoga सूत्र का आठवा सूत्र "समाधी" भी यह चक्र के खुल जाने पर सिद्ध होता है |
FYI :
ऊर्जा मूलाधार से आज्ञा चक्र तक पहुंचने के बाद वह मूल ऊर्जा जिसे कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है वह जगती है | जो एक असीमित ऊर्जा (Infinite Energy ) का स्त्रोत है या यु मान लीजिये की वह कुण्डलिनी ही पुरे ब्रम्हांड की ऊर्जा समेटे हुए है | वह ऊर्जा को सँभालने के लिए ही पहले साधक को पतंजलि के प्रथम पांच सूत्र का पालन करके ही छठ्ठे या सातवे सूत्र पर आना चाहिए तभी साधक कुण्डलिनी ऊर्जा को संभाल ने के काबिल बनता है | अगर अपनी पत्रता के बिना कोई सीधा ही कुण्डलिनी को छेड़े या फिर सीधा ही पतंजलि के सातवे सूत्र पर आ जाये तो ऐसा भी हो सकता है की साधक उस ऊर्जा को बर्दास्त न कर पाए और पागल हो जाये | स्वामीविवेकान्द का उदहारण इस बात को समजने के लिए श्रेष्ठ है | विवेकानंद हररोज अपने एक दोस्त की दुकान से गुज़रते थे जोकि बहोत आस्तिक आदमी था और मूर्ति पूजा का प्रसंसक था | उसकी दुकान में भी सेकड़ो मुर्तिया रहती थी | विवेकानद तो ठहरे नास्तिक इंसान तो एक दिन विवेकानद ने उस दोस्त से कहा की दुकान में इतनी सारी मूर्तिया जगह रोक रही है इन्हे फेक क्यों नहीं देते? उनके दोस्त ने मुर्तिया फेकने से साफ इंकार कर दिया | जब विवेकानद की ऊर्जा जगी तो उनको अपने उसी दोस्त के बारे में एक अनायास मुर्तिया फेकने वाला विचार आ गया | फिर विवेकानद ने बहार जाके देखा तो वह उनका दोस्त सच में अपनी सभी मुर्तिया बाहर फेकने लगा था | उस दोस्त को जब विवेकानद ने पूछा तो उसने जवाब दिया की यह तो मुझे खुद को भी नहीं मालूम की में यह क्या कर रहा हु!!!यह मुर्तिया फेकने से में खुद को रोक ही नहीं प् रहा हु!!!
चक्रो की ऊर्जा का बहाव जैसे आध्यात्मिक और आतंरिक मन पर असरकारी है वैसे ही चक्रो की ऊर्जा का बहाव भौतिक स्तर पर भी बोहोत महत्वपूर्ण है | जब चक्रो की ऊर्जा सही बहाव में बहती है तो इंसान एकदम स्वस्थ जीवन जीता है | अगर यह चक्र की ऊर्जा अस्त व्यस्त हो जाती है तो उसके परिणाम अति गंभीर होते है |
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