Header Ads

क्या आप वाकई मे योग कर रहे है या योग के नाम पर दूसरा कूछ?(International yoga day special)


*                        सबसे पहले तो में वाचको से यह कहना चाहूंगा की शायद वाचक यह न समजे की में जो कह रहा हु वह सब दुसरो के अनुभव से जाना गया होगा। लेकिन एक बात यह भी है की दुसरो के अनुभव मेरी प्रेरना जरूर बने है। पर दुसरो के अनुभव आपके लिए मंज़िल नहीं बन सकते। उन्हें तो रास्तो में ही छूटना होता है। योग का रास्ता ऐसा है जहा दुसरो के अनुभव कुछ काम नहीं आते आपको खुद को ही अनुभव लेकर अपना रास्ता ढूँढना होता है। ईसी लिए में यह जो भी कह रहा हु उसे आप वाचक गण कृपया प्रेरना के तोर पर ले नाकि उसे अपनी मंज़िल माने में जो भी कह रहा हु मेरा अनुभव है हो सकता है दुसरो के अनुभव इस सन्दर्भ में अलग अलग हो। लेकिन योग के सन्दर्भ में जैसे बुद्ध ने एक बार कहा था एक ज्योत ही ज्योत को जला सकती है वैसे ही मुझे जो कुछ भी अनुभव ध्यान और योग करने से हुए है उसे में बस आप से शेयर करने जा रहा हु। सिर्फ इसी लिए की कोई इससे प्रेरना लेकर अपना रास्ता खोजने की ओर अपने कदम बढ़ाये।

*                     आज यानि 21 June को UNO ने विश्व योग दिन के तोर पर घोषित किया है। सबसे पहले तो दुनिया जिसे योग समझती है वह कोई योग नहीं है। शायद दुनिया के 70% लोग व्यायाम करने को ही योग समझते है। निश्चित रूप से योग ओर व्यायाम का संबंध है लेकिन व्यायाम कोई योग नहीं है। आपको एक योगी बनने के लिए ओर शरीर शुद्धि के लिए व्यायाम करना आवश्यक है। योग की मुलतह खोज पतंजलि ने की यह में आपको अपनी अगली चर्चा में बता चूका हु। वैसे तो भारत में हज़ारो सालो से योग की यात्राए चल रही है। कही तरह से लोगो ने नयी नयी विधिया सीखी ओर खोजी है। इसी दौरान पतंजलि ने यह सभी विधिओ को संगृहीत करके ओर उस पे अभ्यास करके अपना एक अद्भुत ओर अनोखा योगशास्त्र तैयार किया है जिसमे सभी योगिक विधिओ की बुनियाद छुपी हुई है। भारत के सुवर्णकाल में पतंजलि ने अपने ग्रन्थ 'पतंजलि योग सूत्र' से कम से कम ईस क्षेत्र में क्रांति घटित की है। में व्यक्तिगत तोर पर यह मानता हु की पतंजलि योग सूत्र भारत के लिए एक गीता जैसा ही पूजनीय ग्रंथ होना चाहिए। पतंजलि कहते है की "योग का मतलब प्रकृति से जुड़ जाना है"।
इस ब्रह्मांड में सिर्फ दो ही अस्तित्व है एक आपका ओर दूसरा इस ब्रह्मांड का इसके आलावा ओर कोई अस्तित्व नहीं है।  आप किसी तरह से आपके और अस्तित्वमान प्रकृति के बिच का भेद मिटा सके वही योग घटित होता है।  फिर आप अकेले नहीं रहते आप पूरा अस्तित्व ही बना जाते है। अगर कोई इंसान योगी बनता है तो उसके लिए अद्वैत का भाव ही मिट जाता है। उसके लिए खुद का अस्तित्व ही मिट जाता है औऱ दुसरो का भी मिट जाता है। लेकिन आज के दौर में व्यायाम के तोर पर योग की सस्ती Branding हो रही है।

*               योग कोई ऐसी विधि नहीं है जो सोफे पर बैठ कर TV पे या Youtube में Videos देख कर सीखी जाए ( हा यह सब आपकी उत्सुकता को जरूर बढ़ाएंगे) । इस के लिए आपको पूरी तरह समर्पित होना पड़ेगा। और योगी वही बन सकता है जो मानसिक और शारीरिक तोर पे वह अखुट ऊर्जा को अपने में सिमित रखने की कला में सक्षम हो। अगर आप इस तरह से टीवी पे या किसे के कहने से योग की यात्रा पर चले है तो मेरा यकीन मानिये आप इस मार्ग के लिए बिलकुल नहीं बने है। आपको योगी बनने के लिए बस एक प्यास की जरुरत है अगर वह आपने पहचान ली तो आप इस मार्ग के लिए है।

*                    खेर, पतंजलि ने योग का आखरी द्वार यानि की समाधी तक पहुंच ने के लिए मुख्या 7 द्वार दिखाए है। यह सब आपको पार करने के बाद ही योग का अमृत मिल सकता है। इसे ऐसे ले की अगर आपने आज एक आम का बीज बोया है तो आपको उसका फल खाने के लिए कही वर्षो तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। और सिर्फ प्रतीक्षा करने से ही काम नहीं बनेगा , आप अगर उस बीज से अच्छा और वाकईमें मीठा फल चाहते हो तो आपको उसमे उस तरह से खात भी देनी पड़ेगी, उसको पानी से हररोज नवाज़ना पड़ेगा। उस पौधे की सेहत का हर तरह से ख्याल रखना पड़ेगा तभी वह पौधा एक दिन एक अच्छा पेड़ बनके मीठे फल खिलायेगा। यह नियम योग में भी लागू होता है। अमेरिका में तो आज होलसेल के तोर पर सिर्फ कुछ रुपये दे कर लोगो को एक हफ्ते या एक महीने में योगी घोषित कर दिया जाता है। जब की पूरब की विद्धि से आपको 5 साल भी लग सकते है या 12 साल भी लग सकते है। और कुछ लोग नहीं बल्कि बहोत सारे लोग यह सब कथित आकर्षक और प्रलोभन वाले विज्ञापन देख कर खींचे चले जाते है। शायद ऐसा सोच कर ही दुनिया में कुछ कर नहीं पाए योग से कुछ शक्तिया हासिल करके आराम से ज़िंदगी जियेंगे। नहीं! जैसे में पहले भी कह चूका हु और अब भी कह रहा हु की अगर सिर्फ उत्सुकता है तो आप ध्यान और योग के विषय में जाए ही मत। अगर आपको सिर्फ यह जान ने की उत्सुकता है की योग और ध्यान से क्या होगा तो आप इसके लिए नहीं है। अगर साहस और प्यास हो खुद को जानने की , अगर यदि आपको यह जगत मिथ्या लगता है, अगर सही में आप खुद को दुनिया की भीड़ में होते हुए भी अलग महसूस करते है तो ही ध्यान और योग के मार्ग पर चले।

*                     अगर आप जानना चाहते है की पतंजलि के 7 द्वारो से निकल कर 8 में द्वार पर योगी कैसे बनता है तो यहाँ कुछ मेरे Articles की Links है उसे पढ़े और खुद अनुभव करे। यह Article भी आपके लिए प्रेरना होना चाहिए, मंज़िल नहीं। वह तो आपको इस मार्ग पे चल के खुद ही खोजनी पड़ेगी।
https://www.infomaesters.com/2018/04/blog-post_9.html?m=1

https://www.infomaesters.com/2018/05/science-of-seven-chakras.html?m=1

FYI : -

          गीता का श्लोक है जिसमे श्री कृष्णा ने योग के महिमा को बखूबी समझाया है।

योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥ 2, ४८

जो कर्मफल त्याग कर सिर्फ कर्म में अपनी रूचि रखता है, जिसे हार या जित का कोई डर नहीं है एवम हार या जित जिसके लिए सामान स्थिति है। जो ना सुख में सुखी होता है ना दुःख में दुखी। जो सभी आसक्तीओ का त्याग करके अपने में स्थित है वही एक योगी कहलाता है।

No comments

Powered by Blogger.