ध्यान के कुछ ऐसे प्रयोग जो आपका जीवन बदल देंगे !!
* बुद्ध के जीवन का एक प्रसंग है, बुद्ध एक दिन अपनी कुटीर में बेठे हुए थे उतने में ही एक व्यक्ति उनके पास आया । आकर वह आदमी सिर्फ बुद्ध के सामने बैठ गया । बात चित आगे चली तो बुध्द ने बातचीत में उस आदमी का पैर हिलते देखा । बुध्दने उस आदमी से कहा , ये तुम अपना पैर बार बार क्यों हिला रहे हो? तो वह आदमी थोड़ा अस्वस्थता से बोला में कहा हिला रहा हु यह तो अपने आप हिल रहा है । बुद्धने ने कहा यह तो बड़ी अजीब बात है तुम्हारा पैर हिल रहा है और तुम्हे खुद को यह बौद्ध भी नहीं की तुम्हारा पैर हिल रहा है । तूम तो बड़े खतरनाक आदमी मालूम पड़ते हो कल तो शायद तुम किसी का खून भी करदो और तुम्हे यह बोध भी नहीं रहेगा की यह तो तुमने किया है । तुम तब भी शायद यही कहोगे की मैंने नहीं किया यह तो अपने आप हो गया ।
* बुद्ध का कहना कितना गंभीर है? यह बात का शायद हमें अंदाज़ा भी नहीं क्यों की इस वर्तमान समय में करीब करीब सभी लोग यही कर रहे है । क्या कर रहे है खुद को भी मालूम नहीं । बस दौड़ रहे है, क्यों दौड़ रहे है मालूम भी नहीं । आदमी की दौड़ सुबह बिस्तर से जो सुरु होती है धन के चक्क्कर में या पद के चक्कर में या फिर कोई दूसरे किसी चक्कर में वह रात को बिस्तर में ही पूरी होती है । उनको खुद को भी नहीं मालूम की हम आखिर कर क्या रहे है। एक कोम्प्युटर प्रोग्राम्ड मशीन की तरह बस दौड़े जा रहे है । जितना प्रोग्रामिंग किया है उतना ही दिमाग चलाते है और शाम को खुद को ही बिस्तर में जाने का कमांड दे के सो जाते है, पर क्या करे इस मटीरिअलिज़म के ज़माने में यह करना भी ज़रूरी बनता जा रहा है । में यह नहीं कह रहा की यह सब छोड़ दे । ज़रा ठहरिये और सोचिये इस आपा धापी से आपको क्या मिला ? धन और प्रतिष्ठा मिल भी गई है तो ज़रा खुद को पूछए की क्या यह आपको आनंदित करने में ज़रा भी कारगत हुई या फिर पूरा समय जो यह सब कमाने में गवाया वह सब फरेब थे ? में यह भी नहीं कह रहा की धन और प्रतिष्ठा कमाना पाप है । धन कमाना बोहोत सुखद बात है धन आपको स्वतन्त्र बनता है पर पृथ्वी पर करीब करीब सभी लोग ऐसे है जो बोहोत सारा धन कमाने में जुट जाते है वह बेचारो को तो यह भी नहीं मालूम की वह दिन रात धन कमा किस लिए रहे है । बस गधो की तरह दुसरो को देखके वह भी दौड़ रहे है ।
* अगर आप खुद को इस प्रश्न से पहेलेसे ही पीड़ित मानते है तो समजियेगा की आप बड़े भाग्यशाली है की यह प्रश्न आपको हुआ । क्यों की यहाँ से ही शुरु होती है ध्यान की यात्रा । बुद्ध ने एक बार कहा है की यदि आप अपनी सांसे पूरी होस से देख पाए ज़रा सी भी न चुके आपकी जानकारी के बिना तो फिर आप पहले से ही एक जागृत व्यक्ति है । आपके शरीर का कोई भी हिस्सा आपकी जानकारी के बिना काम न करे वह ही एनलाइटनमेंट है ।
* एक सवाल यह उठता है की प्राचीन अखंड भारत का सबसे महानतम अविष्कार कोनसा है ? क्या आप कहेंगे की वह शून्य है ? और क्या आप कहेंगे की वह दर्शनशास्त्र है ? क्या आप कहे की वह सुश्रुत के मेडिकल निर्देश है ? नहीं, अगर आप यह सोच रहे हे तो आप गलत है । भारत का एक आविष्कार ऐसा है जिसने यह अविष्कारों और शास्त्रों जैसे की उपनिषद से लेकर सुश्रुत के चिकित्सा विज्ञान को जन्म दिया । वह आविष्कार है ध्यान का आविष्कार । आधुनिक उपकरणों से भी जिसकी स्पीड नापना बहुत मुश्किल काम है वह प्रकाश की स्पीड भी हमारे ऋषि वैज्ञानिको ने तब सचोट नाप के दिखाई थी जिसका वर्णन करने वाले श्लोक वैज्ञानिको को थोड़े समय पहले पुराने संस्कृत ग्रन्थ में से मिले है । यह सब कैसे संभव हूआ? ज़रा सोचिये पतंजलि ने यह कैसे पता लगाया होगा की हमारे शरीर में 30 लाख रक्त नलिकाएं है ? सुश्रुत ने बिना किसी उपकरण के कैसे जाना होगा । उन्हों ने यह कैसे जाना होगा की बिना किसी मेडिकल साइन्स के और औज़ारो के बिना भी ट्रांसप्लांट्स संभव हो सकते है । वेद व्यास ने पहले से कैसे जाना की महाभारत का युद्ध तो निश्चित है ( यह सबलोग जोकि कोई वैज्ञानिक से काम नहीं थे वह सब सात चक्रो के विज्ञान को जानते थे । सात चक्रो के विज्ञान से आप खुद भी भविष्य या भूतकाल के ज्ञानी हो सकते है । इस बारे में में अपने अगले आर्टिकल में बात करुगा) बोहोत सारे शोध करताऔ ने ध्यान के सन्दर्भ में शोध की है उनमे से लगभग सभी लोगो का मनना है की जितना ऋग्वेद पुराना है उतना ही भारत में "ध्यान" पुराना है । ऋग्वेद के 10.000 साल पुराने होने का अनुमान है (कुछ शोधकर्ता उसे 30 हजार साल पुराना मानते है ) तो ध्यान भी सायद भारत में उतना ही पुराना है यह हम कह सकते है । क्योकि ऋग्वेद एक दर्शन का वेद हे और दर्शन शास्त्र का जन्म ध्यान से ही हुआ है । मुलभुत तौर पे ध्यान कोई प्रक्रिया नहीं है , ध्यान बस एक स्वभाव है । जीवन की आपा धापी में इंसान खुद अपने मूल ऊर्जा स्त्रोत से कट चूका है ध्यान उसी डोर को वापस जोड़ने का जरिया है ।
* प्राचीन भारत में ध्यान के 108 तरीके खोजे गए है (माला फिरने का सीधा सम्बन्ध ध्यान से है , माला में 108 जो मानेक होते है वह भी ध्यान के 108 प्रकार के बौद्ध के लिए है ) समय के साथ उसमे बुध्धो द्वारा बदलाव हुआ और नए तरीको की खोज भी हुई । आज वह संख्या 123 तक पहुंच चुकी है । इनमे से कुछ तरीके इतने करगत है जो हररोज़ करने से अगर कोई साधक उसे पूरा डेडिकेशन दिखाए तो अविस्मरणीय परिणाम हो सकते है । शुरू में साधक को ध्यान लगाने में दिक्कते आ सकती है लेकिन थोड़े दिनों के अभ्यास के बाद साधक आसानी से ध्यान लगा पाएंगे ।
* Warning : अगर आप ध्यान करना चाहते है तो ध्यान शुरू करने के कम से कम 30 दीन पहले आपको शरीर शुध्धि करना अति आवश्यक है । अगर शरीर शुध्धि के बीना ध्यान को शुरू कीया तो गंभीर परिणाम आ सकते है । सामान्यतः शरीर शुद्धि के लिए आप कीसी भी प्राणायाम को चुन सकते है । भस्त्रिका प्राणायाम इसके लिए सबसे ज़्यादा सानुकूल रहेगा ।
* 1)विपश्यना
कहा जाता है की अबतक जितने भी बुद्ध(बुद्ध का मतलब होता है जो जाग चूका है वह) हुए है उनमे से ज़्यादातर बुध्धो ने परम ज्ञान के पहाड़ को छूने के लिए विपश्यना की सीढी को चुना है । दरअसल विपश्यना जैसा आसान और कारगत ध्यान इस पृथ्वी पर दूसरा कोई दूसरा नहीं है । गौतम बुद्ध ने भी परम ज्ञान विपश्यना से ही प्राप्त कीया था । विपश्यना को करने के लिए साधक बस शरीर को किसी भी अवस्था में रख सकते है जिससे उनकी रीड की हड्डी सीधी(straight) रहे ।ध्यानी सिर्फ अपने श्वास पर ध्यान दे सिर्फ दो मिनिट में ही यह ध्यान आपको इतनी ताज़गी देगा की आप सोच भी नहीं सकते ।
* 2) तमस साधना ध्यान
तमस साधना में सिर्फ साधक को उठते बैठते या फिर किसी भी कार्य को करते समय अपने अंदर एक ज्योत जल रही है ऐसा भाव करना होता है । सिर्फ एक माह के प्रयोग से साधक के शरीर में ऊर्जा का संचार इस तरह होता है की उसके पास बैठने वाला भी उस ऊर्जा या ऊष्मा को महसूस कर सकता है ।
* 3) त्राटक ध्यान या टिक टीकी
त्राटक ध्यान में साधक को अपने से 2-3 फिट दूर एक बिंदु या किसी जल रही ज्योत पर ध्यान करना होता है । यह ध्यान छोटे बचे भी कर सकते है ।एकाग्रता बढनेमें यह ध्यान अविस्मरणीय ढंग से कारगत है । इसके आलावा साधक किसी ऐसे प्राणी या अपने पालतू प्राणी जिससे गाढ़ प्रेम हो उनकी आँखों को भी चुन सकते है ध्यान के लिए ।
* 4) होश पूर्वक कार्य
यह ध्यान विपश्यना का ही एक प्रकार है जिसमे पुरे दिन में आप कोई भी काम कर रहे हो उसे सिर्फ होश पूर्वक करने से यह ध्यान अपने आप घटित होता है । अगर आप दफ्तर में काम कर रहे हो तो पुरे होश पूर्वक काम करे । अगर आप टीवी देख रहे हो तो पुरे होश पूर्वक देखे, अगर आप जिम भी कर रहे हो तो पुरे होश पूर्वक करे । कोई भी काम करते वक्त बस आपको वर्तमान का ख्याल रहे बस इतने से छोटे प्रयोग से 1 माह में भी अद्भुत परिणाम घटित होंगे जिसका साधक को अंदाज़ा भी नहीं होगा ।
* 5) सोते समय ध्यान
इस प्रयोग में साधक को सोते समय अपने आप को सिर्फ रिलेक्स करवाना है । अपने आप को बस शांत करना है । साधक ऐसा करे की पहले अपने शरीर शांत होने का भाव करे , फीर अपनी श्वास को शांत करने का भाव करे और आखिर में अपने मन को शांत करने का भाव करे । सिर्फ 7 दिन के प्रयोग से ही स्वप्न विलीन हो जायेंगे और यह ध्यान आपको गहरी और क्वालिटी वाली नींद लाने में मदद करेगा ।
* यह कुछ आसान सी विधिया है जो आम आदमी को भी संसार में रहते हुए भी ध्यानी बना सकती है । परमात्मा को जानने के लिए किसी को संसार छोड़ने की ज़रूरत नहीं है । संसार छोड़ने वाले तो भगोड़ो के सिवा कुछ नहीं होते । ध्यान का मतलब ही है होश पूर्वक जीना । अगर संसार में भी रहकर यह बौद्ध रहे की संसार क्सणिक है तो सब कल्पनाये व्यर्थ हो जाती है , सब भ्रम टूट जाते है और तब ही असली जीवन शुरू होता है , जहा न तो कोई भ्रम होगा न हीं नींद होगी । न ही कल्पनाओ और वासनाओ से घिरा जीवान आचरण होगा । जैसे फूल अपने होने से खुश है और रह गुजरने वालो को भी सुगंद देते है बीना किसी रिटर्नगिफ्ट की आशा रखते हुवे वैसे ही वह असली सुगंध होगी आपकी जो आपको तो समृद्ध करेगी ही पर आपसे जुड़े सभी लोगो का भी जीवन आपके होने से महक उठेगा ।
FYI :
ऋग्वेद दुनिया का सबसे पुराना ग्रन्थ है । वैज्ञानिको को 10 हजार साल पुराने कुछ ऐसे पथ्थर मिले है जिसमे ऋग्वेद के श्लोक प्राकृत भाषा में कुतरे हुए है । दुनिया की सबसे पुरानी भाषा भी प्राकृत है न की संस्कृत!!!
* बुद्ध का कहना कितना गंभीर है? यह बात का शायद हमें अंदाज़ा भी नहीं क्यों की इस वर्तमान समय में करीब करीब सभी लोग यही कर रहे है । क्या कर रहे है खुद को भी मालूम नहीं । बस दौड़ रहे है, क्यों दौड़ रहे है मालूम भी नहीं । आदमी की दौड़ सुबह बिस्तर से जो सुरु होती है धन के चक्क्कर में या पद के चक्कर में या फिर कोई दूसरे किसी चक्कर में वह रात को बिस्तर में ही पूरी होती है । उनको खुद को भी नहीं मालूम की हम आखिर कर क्या रहे है। एक कोम्प्युटर प्रोग्राम्ड मशीन की तरह बस दौड़े जा रहे है । जितना प्रोग्रामिंग किया है उतना ही दिमाग चलाते है और शाम को खुद को ही बिस्तर में जाने का कमांड दे के सो जाते है, पर क्या करे इस मटीरिअलिज़म के ज़माने में यह करना भी ज़रूरी बनता जा रहा है । में यह नहीं कह रहा की यह सब छोड़ दे । ज़रा ठहरिये और सोचिये इस आपा धापी से आपको क्या मिला ? धन और प्रतिष्ठा मिल भी गई है तो ज़रा खुद को पूछए की क्या यह आपको आनंदित करने में ज़रा भी कारगत हुई या फिर पूरा समय जो यह सब कमाने में गवाया वह सब फरेब थे ? में यह भी नहीं कह रहा की धन और प्रतिष्ठा कमाना पाप है । धन कमाना बोहोत सुखद बात है धन आपको स्वतन्त्र बनता है पर पृथ्वी पर करीब करीब सभी लोग ऐसे है जो बोहोत सारा धन कमाने में जुट जाते है वह बेचारो को तो यह भी नहीं मालूम की वह दिन रात धन कमा किस लिए रहे है । बस गधो की तरह दुसरो को देखके वह भी दौड़ रहे है ।
* अगर आप खुद को इस प्रश्न से पहेलेसे ही पीड़ित मानते है तो समजियेगा की आप बड़े भाग्यशाली है की यह प्रश्न आपको हुआ । क्यों की यहाँ से ही शुरु होती है ध्यान की यात्रा । बुद्ध ने एक बार कहा है की यदि आप अपनी सांसे पूरी होस से देख पाए ज़रा सी भी न चुके आपकी जानकारी के बिना तो फिर आप पहले से ही एक जागृत व्यक्ति है । आपके शरीर का कोई भी हिस्सा आपकी जानकारी के बिना काम न करे वह ही एनलाइटनमेंट है ।
* एक सवाल यह उठता है की प्राचीन अखंड भारत का सबसे महानतम अविष्कार कोनसा है ? क्या आप कहेंगे की वह शून्य है ? और क्या आप कहेंगे की वह दर्शनशास्त्र है ? क्या आप कहे की वह सुश्रुत के मेडिकल निर्देश है ? नहीं, अगर आप यह सोच रहे हे तो आप गलत है । भारत का एक आविष्कार ऐसा है जिसने यह अविष्कारों और शास्त्रों जैसे की उपनिषद से लेकर सुश्रुत के चिकित्सा विज्ञान को जन्म दिया । वह आविष्कार है ध्यान का आविष्कार । आधुनिक उपकरणों से भी जिसकी स्पीड नापना बहुत मुश्किल काम है वह प्रकाश की स्पीड भी हमारे ऋषि वैज्ञानिको ने तब सचोट नाप के दिखाई थी जिसका वर्णन करने वाले श्लोक वैज्ञानिको को थोड़े समय पहले पुराने संस्कृत ग्रन्थ में से मिले है । यह सब कैसे संभव हूआ? ज़रा सोचिये पतंजलि ने यह कैसे पता लगाया होगा की हमारे शरीर में 30 लाख रक्त नलिकाएं है ? सुश्रुत ने बिना किसी उपकरण के कैसे जाना होगा । उन्हों ने यह कैसे जाना होगा की बिना किसी मेडिकल साइन्स के और औज़ारो के बिना भी ट्रांसप्लांट्स संभव हो सकते है । वेद व्यास ने पहले से कैसे जाना की महाभारत का युद्ध तो निश्चित है ( यह सबलोग जोकि कोई वैज्ञानिक से काम नहीं थे वह सब सात चक्रो के विज्ञान को जानते थे । सात चक्रो के विज्ञान से आप खुद भी भविष्य या भूतकाल के ज्ञानी हो सकते है । इस बारे में में अपने अगले आर्टिकल में बात करुगा) बोहोत सारे शोध करताऔ ने ध्यान के सन्दर्भ में शोध की है उनमे से लगभग सभी लोगो का मनना है की जितना ऋग्वेद पुराना है उतना ही भारत में "ध्यान" पुराना है । ऋग्वेद के 10.000 साल पुराने होने का अनुमान है (कुछ शोधकर्ता उसे 30 हजार साल पुराना मानते है ) तो ध्यान भी सायद भारत में उतना ही पुराना है यह हम कह सकते है । क्योकि ऋग्वेद एक दर्शन का वेद हे और दर्शन शास्त्र का जन्म ध्यान से ही हुआ है । मुलभुत तौर पे ध्यान कोई प्रक्रिया नहीं है , ध्यान बस एक स्वभाव है । जीवन की आपा धापी में इंसान खुद अपने मूल ऊर्जा स्त्रोत से कट चूका है ध्यान उसी डोर को वापस जोड़ने का जरिया है ।
* प्राचीन भारत में ध्यान के 108 तरीके खोजे गए है (माला फिरने का सीधा सम्बन्ध ध्यान से है , माला में 108 जो मानेक होते है वह भी ध्यान के 108 प्रकार के बौद्ध के लिए है ) समय के साथ उसमे बुध्धो द्वारा बदलाव हुआ और नए तरीको की खोज भी हुई । आज वह संख्या 123 तक पहुंच चुकी है । इनमे से कुछ तरीके इतने करगत है जो हररोज़ करने से अगर कोई साधक उसे पूरा डेडिकेशन दिखाए तो अविस्मरणीय परिणाम हो सकते है । शुरू में साधक को ध्यान लगाने में दिक्कते आ सकती है लेकिन थोड़े दिनों के अभ्यास के बाद साधक आसानी से ध्यान लगा पाएंगे ।
* Warning : अगर आप ध्यान करना चाहते है तो ध्यान शुरू करने के कम से कम 30 दीन पहले आपको शरीर शुध्धि करना अति आवश्यक है । अगर शरीर शुध्धि के बीना ध्यान को शुरू कीया तो गंभीर परिणाम आ सकते है । सामान्यतः शरीर शुद्धि के लिए आप कीसी भी प्राणायाम को चुन सकते है । भस्त्रिका प्राणायाम इसके लिए सबसे ज़्यादा सानुकूल रहेगा ।
* 1)विपश्यना
कहा जाता है की अबतक जितने भी बुद्ध(बुद्ध का मतलब होता है जो जाग चूका है वह) हुए है उनमे से ज़्यादातर बुध्धो ने परम ज्ञान के पहाड़ को छूने के लिए विपश्यना की सीढी को चुना है । दरअसल विपश्यना जैसा आसान और कारगत ध्यान इस पृथ्वी पर दूसरा कोई दूसरा नहीं है । गौतम बुद्ध ने भी परम ज्ञान विपश्यना से ही प्राप्त कीया था । विपश्यना को करने के लिए साधक बस शरीर को किसी भी अवस्था में रख सकते है जिससे उनकी रीड की हड्डी सीधी(straight) रहे ।ध्यानी सिर्फ अपने श्वास पर ध्यान दे सिर्फ दो मिनिट में ही यह ध्यान आपको इतनी ताज़गी देगा की आप सोच भी नहीं सकते ।
* 2) तमस साधना ध्यान
तमस साधना में सिर्फ साधक को उठते बैठते या फिर किसी भी कार्य को करते समय अपने अंदर एक ज्योत जल रही है ऐसा भाव करना होता है । सिर्फ एक माह के प्रयोग से साधक के शरीर में ऊर्जा का संचार इस तरह होता है की उसके पास बैठने वाला भी उस ऊर्जा या ऊष्मा को महसूस कर सकता है ।
* 3) त्राटक ध्यान या टिक टीकी
त्राटक ध्यान में साधक को अपने से 2-3 फिट दूर एक बिंदु या किसी जल रही ज्योत पर ध्यान करना होता है । यह ध्यान छोटे बचे भी कर सकते है ।एकाग्रता बढनेमें यह ध्यान अविस्मरणीय ढंग से कारगत है । इसके आलावा साधक किसी ऐसे प्राणी या अपने पालतू प्राणी जिससे गाढ़ प्रेम हो उनकी आँखों को भी चुन सकते है ध्यान के लिए ।
* 4) होश पूर्वक कार्य
यह ध्यान विपश्यना का ही एक प्रकार है जिसमे पुरे दिन में आप कोई भी काम कर रहे हो उसे सिर्फ होश पूर्वक करने से यह ध्यान अपने आप घटित होता है । अगर आप दफ्तर में काम कर रहे हो तो पुरे होश पूर्वक काम करे । अगर आप टीवी देख रहे हो तो पुरे होश पूर्वक देखे, अगर आप जिम भी कर रहे हो तो पुरे होश पूर्वक करे । कोई भी काम करते वक्त बस आपको वर्तमान का ख्याल रहे बस इतने से छोटे प्रयोग से 1 माह में भी अद्भुत परिणाम घटित होंगे जिसका साधक को अंदाज़ा भी नहीं होगा ।
* 5) सोते समय ध्यान
इस प्रयोग में साधक को सोते समय अपने आप को सिर्फ रिलेक्स करवाना है । अपने आप को बस शांत करना है । साधक ऐसा करे की पहले अपने शरीर शांत होने का भाव करे , फीर अपनी श्वास को शांत करने का भाव करे और आखिर में अपने मन को शांत करने का भाव करे । सिर्फ 7 दिन के प्रयोग से ही स्वप्न विलीन हो जायेंगे और यह ध्यान आपको गहरी और क्वालिटी वाली नींद लाने में मदद करेगा ।
* यह कुछ आसान सी विधिया है जो आम आदमी को भी संसार में रहते हुए भी ध्यानी बना सकती है । परमात्मा को जानने के लिए किसी को संसार छोड़ने की ज़रूरत नहीं है । संसार छोड़ने वाले तो भगोड़ो के सिवा कुछ नहीं होते । ध्यान का मतलब ही है होश पूर्वक जीना । अगर संसार में भी रहकर यह बौद्ध रहे की संसार क्सणिक है तो सब कल्पनाये व्यर्थ हो जाती है , सब भ्रम टूट जाते है और तब ही असली जीवन शुरू होता है , जहा न तो कोई भ्रम होगा न हीं नींद होगी । न ही कल्पनाओ और वासनाओ से घिरा जीवान आचरण होगा । जैसे फूल अपने होने से खुश है और रह गुजरने वालो को भी सुगंद देते है बीना किसी रिटर्नगिफ्ट की आशा रखते हुवे वैसे ही वह असली सुगंध होगी आपकी जो आपको तो समृद्ध करेगी ही पर आपसे जुड़े सभी लोगो का भी जीवन आपके होने से महक उठेगा ।
FYI :
ऋग्वेद दुनिया का सबसे पुराना ग्रन्थ है । वैज्ञानिको को 10 हजार साल पुराने कुछ ऐसे पथ्थर मिले है जिसमे ऋग्वेद के श्लोक प्राकृत भाषा में कुतरे हुए है । दुनिया की सबसे पुरानी भाषा भी प्राकृत है न की संस्कृत!!!
Post a Comment