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भारतीय अंधविश्वासो के पीछे का विज्ञान । Indian superstitions and their logic hindi

         भारत के कुछ ऐसे कथित अंधविश्वास जिसके पीछे छुपा है विज्ञान



                 हम भारत के प्राचीन विज्ञान के बारे में बहुत बात कर चुके है, लेकिन विज्ञान के जगत में भारत का योगदान इतना बड़ा है की बात करते करते ज़ुबान थक जाती है लेकिन बाते ख़तम नहीं होती। दुनिया में भारत की प्रशन्सा इसलिए होती है की यह दुनिया की सबसे पुरानी, अत्याधुनिक सबसे वैज्ञानिक संस्कृति का सर्जक रहा है। प्राचीन ग्रंथो की बात करे तो अनु तकनीक से लेकर हवामे उड़ने वाले आधुनिक विमान भी भारत ने बनाये ऐसे प्रामण भी मिले है।पश्चिम भारत का रामसेतु दुनिया का सबसे पहला मानव निर्मित पुल है जो पूरी वैज्ञानिक तकनीक से बना है।
               दूसरी और गुजरात में द्वारका में स्थित जमीन के अंदर मिले 5000 साल पुराने नगर भारत की भव्यता का प्रमान देते है(जो अभी द्वारका पानी में मिली है वह नज़दीकी भूतकाल की द्वारका है जो की 3500-3000 साल पूर्वी है, और अंदर खुदाई करने पर सोने की द्वारका मिल ने का भी वैज्ञानिको का अनुमान है। द्वारका के बारे में और जानने के लिए पढ़े भारतीय वैज्ञानिक की बेहतरीन पुस्तक 'The lost city of Dwarka') महाभारत के बारे में जानने के लिए यह लिंक पढ़े । इसी तरह से प्राचीन भारत के लोगो ने(और Industrial Revolution के पहले के अर्वाचीन भारत ने भी) छोटी छोटी बातो पर भी वैज्ञानिक नियम लगाए जो आप को चौका देंगे।

==> क्यों होती है हर एक हिन्दू मंदिर में घंटी
                  मंदिर में घंटी रखना कई लोगो को सामान्य लगेगा। कुछ लोग हररोज मंदिर जाते है लेकिन 99% लोगो को मंदिर में लगी घंटी का महत्व नहीं मालूम। पीतल की घंटी को भारत की एक अत्याधुनिक शोध कह सकते है। पीतल की घंटी एक Antibectarial और Atmosphere cleaner का काम करती है। घंटी बजा ने से निकल ने वाली ध्वनि आस पास के सूक्ष्म बेक्टेरिया को मारती है, साथ ही शरीर के सातो केन्द्रो को Active कर देती है। प्राचीन भारत के योग शास्त्र में नाभि चक्र की शुद्धि के लिए एक विशिष्ठ प्रकार की घंटी का इस्तेमाल किया जाता था। जिसका इस्तेमाल आज ज़्यादातर जापान में किया जाता है।

==> सूर्य ग्रहण के वक्त घरे से बहार क्यों नहीं निकलना चाहिए ?
                 अर्वाचीन भारत में इतने आधुनिक वक्त के बाद भी वाहियात Exam System और Percentage के चक्केर में आम आदमी का विज्ञान का ज्ञान शुन्य रह गया है। भारत में कई लोग आज भी यह सोचते है की सूर्य ग्रहण के वक्त बारह निकल ने से बुरी तकते दिमाग पर कब्ज़ा कर लेती है और अपशुकन होता है।लेकिन सच्चाई का रूप इस अन्धविश्वास से बहुत दूर एक विज्ञानी रूप है।

                   जब सूर्य ग्रहण होता है तब सूर्य किरणों के Radiation विभ्भिन प्रकार के होते है जो की इंसान की Skin के लिए बिलकुल भी हितावह नहीं है। सूय्रा ग्रहण के वक्त निकलने वाले सूर्य के किरन इंसान की Skin में विकृति एवं खराबी ला सकते है। यह ज्ञान प्राचीन भारत के लोगो को बहुत पेहले से था इसी लिए सूर्य ग्रहण के बाद गंगा में स्नान करने की प्रथा प्रचलित हुई। उस समय गंगा का पानी भी इतना शुद्ध था और वह जिस जिस जगहों से बहता था वह जगाये वह पानी को दिव्य बनाती थी (इसा पूर्व 200 में महर्षि सुश्रुत गंगा के पानी से कई लोगो का इलाज करते थे)। इसा 1163 में भास्कराचार्य ने अपने ग्रन्थ "करण कुतूहल' में सूर्य ग्रहण को पूरी तरह से 'Revel' किया था। जो की भारत की एक और उपलब्धि है।

==>ज़मीन पर बेठकर खाना खाने का सच
             भारत में यह मान्यता बहुत प्रचलित है की ज़मीन पर बेठकर खाना न खाने से पूर्वज नाराज़ हो जाते है। लेकिन इस अंधविश्वास का मूल कोई विज्ञान का नियम है जिससे आज के भारत में भुला दिया गया है (वैसे भी भारतीय लोगो को विज्ञान से बड़ी आलर्जी है, पिछले कई वर्षो से यह देश सिर्फ विज्ञान जनक में से  विज्ञान उपभोगता का देश बन के रह गया है) ज़मीन पर बेठकर खाना खाने से शरीर का Blood Circulation बढ़िया तरीके से काम करता है जिससे खाना पचाने में शरीर को कोई आपत्ति नहीं होती। खाना खाने की यह रीत भारत में कुछ 10 हज़ार साल से प्रचलित है।

==>रात में नाख़ून काटने का 
             लगभग महाभारत काल से भारत में सस्त्र ऐसे बन रहे है जिससे बाल और नाख़ून जैसे अर्धमृत कोष काटे जा सके। भले ही जिलेट की Blade बनने के बाद अमेरिका के सभी President Clean Saved रहे हो। खेर, प्राचीन भारत में घर में बिजली नहीं होने के कारण नाख़ून काटते वक्त अँधेरे में उंगलिया काटने का भी डर होता था। प्राचीन भारत में माना जाता था की नाख़ून काटने से बुरी किस्मत हाथ पकड़ लेती है और इंसान को क़र्ज़ में डूबा देती है।

कुछ बाते ऐसी है जो पुरे विरोधभास पैदा करती है। ज्योतिष, योग विज्ञान, ऊर्जा विज्ञान और भारत के उपनिषद् यह सब इतने जटिल विषय है की आम आदमी का दिमाग यह सब पूरी तरह से समझने में नाकाम रहा है। इसी लिए लोगो ने समय रहते इसके साथ अपनी मान्यताये और अंधविश्वास को जोड़ दिया। पहले के भारत में विचारशील दिमाग था और संसाधन कम से आज के समय में संसाधन बढ़ गए है और समज कम होती गई है। सोच और समज का कोई बाजार नहीं होता, वार्ना ज़्यादा पैसे वाले लोग आज सबसे बुद्धिमान लोग होते।  
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