Header Ads

राम की ईमानदार बेईमानी और रावण की बेईमान ईमानदारी !!

*राम की असलियत जाने बिना हमने राम को भगवन का दर्रजा दे तो दिया है . लेकिन क्या वाकई में राम भगवन कहलाने के लायक है ? गहन चिंतन के बाद निष्कर्ष तो यही निकलता है की रावण की पवित्र बेईमानी के सामने राम की दंभी ईमानदारी फीकी लगती है . राम को वह दर्रजा मिल गया है जो भारत के किसी भी युगपुरुष को नहीं मिला लेकिन जरा ठहरिये और सोचिये की राम वाकई में इस दरर्जे के लायक थे या नहीं .

*सीता के स्वयंवर में रावण को धोखा दे कर सीता को प्राप्त करने वाले राम की कभी बारी ही न आती अगर रावण उस स्वयंवर में मौजूद होता . वाचक गण एक बात ख्याल रखे की रावण से बड़ा ब्राह्मण और उसे बड़ा ताकतवर दस सर वाला बुद्धिशाली आदमी कोई और उस समय फलक में नहीं था .

*सीता हरण का कारन राम के भाई लक्ष्मण द्वारा रावण की बहेन का नाक काटने को माना जाता है .लेकिन उस पूरी घटना में ऐसा लगता है की लक्ष्मण इतना अहंकारी आदमी है की  साधारण से विवाह प्रस्ताव को ना बोलने के बजाये उसने सुप्रणखा की नाक काट दी .अगर लक्ष्मण ना बोलदेते तो ये सब जंजट होती ही नहीं .राम ने सीता को अग्निपरीक्षा देने को कहा था लेकिन उन्हों ने एक बार भी नहीं सोचा की सीता तीन साल लंका में अकेली थी तो वह भी तो अकेले थे उन्हों ने क्यों अग्निपरीक्षा न दी अगर वह अग्निपरीक्षा देते तो शायद सीता की तरह बाहर भी न आये ये निश्चित है .

*एक धोबी की बात मान कर एक गर्भवती स्त्री को जंगल में भेज दिया क्या यही है उनकी भगवानता ? क्या उनकी बुद्धिमता इतनी कमजोर थी की इतना भी उनको मालूल नहीं की धोबी गलत है ? उससे अच्छा तो रावण है जिसने सीता को तीन साल कैद में रखा वह भी अपने सुन्दरतम बगीचे में , और अपनी पडछायी भी सीता पर न पड़े उसका भी खयाल रखा .

*युद्ध समाप्ति के बाद विभिसन को उन्हों ने राजगद्दी सौंपदि क्युकी जिसने राजा से धोखाधड़ी करके राम को जिताया था उसे ही सराहना था और अगर विभिसन जैसा बड़ा दगाबाज़ राम को राज़ न बताता तो शायद राम का जितना ना मुमकिन था .



No comments

Powered by Blogger.